लेखनी कहानी -27-Oct-2022 लड़की
वो संघर्ष करती है
कोख में
जिन्दा रहने के लिए ।
पैदा होने पर
अस्तित्व बचाने के लिए ।
अपने हिस्से का प्यार
घरवालों से पाने के लिए ।
वो बड़ी होती है ,
तिल तिल
बिना समुचित खाद पानी के ।
अपनी इच्छाओं को
छुपा के, दबा के , मिटा के ।
वो कब बड़ी बन जाती है ,
पता ही नहीं चलता ।
छोटे की जिम्मेदारी उठाते ।
घर की सफाई में, किचन में,
मां का हाथ बंटाते बंटाते।
वो प्रशंसा की हकदार होती है ,
पढ़ने में,
खेल कूद में,
डांस कम्पिटीशन में,
डिबेट में ,
पर आंखें थक जाती हैं,
प्रशंसा की बाट जोहते जोहते।
सबकी निगाहें झेलती है ,
स्कूल , कालेज जाते ।
सिनेमा, माॅल आते जाते
सहपाठी से बतियाते
हंसते, मुस्कुराते ।।
शालीनता ओढ़े रहती है,
आॅफिस में काम करते।
बड़ों के बीच बैठते
बस, रेल में सफर करते ।
सबका खयाल रखती है,
हरदम , हर काम करते करते।
रोते, सुबकते, हंसते मुस्कुराते।
बिना छुट्टी के
लगी रहती है
कभी थकती नहीं है
सेवा करते करते ।।
मैं भी आज धन्य समझता हूं,
उस मातृ शक्ति को
प्रणाम करते करते ।।
हरिशंकर गोयल
Khan
28-Oct-2022 11:54 AM
Very nice 👍🌺
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Swati chourasia
28-Oct-2022 10:19 AM
वाह बहुत ही बेहतरीन रचना 👌
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
28-Oct-2022 08:00 AM
बहुत ही उम्दा सृजन,,,, माँ के जीवन की सटीक अभिव्यक्ति
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